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खोई ज़िंदगी-27-Aug-2023

प्रतियोगिता हेतु 
दिनांक: 27/08/2023
खोई ज़िंदगी 

ज़िंदगी तू खो गई थी,
कहीं गुम सी हो गई थी ।
फिर अचानक आकर तूने
क्यूँ,,, हलचल मचा दी?
क्यूँ ठहरे पानी में 
कंकड़ सी उछाल दी।
बड़ी मुश्किल से 
संभाला था इस दिल को
क्यूँ तूने मेरी बेचैनी 
बढ़ा दी?
ज़िंदगी तू खो गई थी,
कहीं गुम सी हो गई थी ।
फिर अचानक आकर तूने
क्यूँ,,, हलचल मचा दी?

भूल चुके थे हम उस लम्हें को
जो संग उसके गुज़ारा था।
दिल लगाया था कभी और
उसे अपना बनाया था।
चला गया वो तोड़कर दिल
अब कुछ नहीं शेष रह गया।
अचानक आ गई सामने और
आँखो की नमी बढ़ा दी।
ज़िंदगी तू खो गई थी,
कहीं गुम सी हो गई थी ।
फिर अचानक आकर तूने
क्यूँ ,, हलचल मचा दी?

शाहाना परवीन "शान"...✍️
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश 

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3 Comments

Varsha_Upadhyay

27-Aug-2023 07:37 PM

बहुत खूब

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Babita patel

27-Aug-2023 04:09 AM

beautiful poem always

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Abhilasha Deshpande

27-Aug-2023 09:13 AM

Very nice

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